स्टेशन मौतपुर का भयानक रहस्य

एक बेहद सर्द रात थी, स्टेशन मास्टर अपनी नई पोस्टिंग पर ठंड से कांप रहा था। वह मन ही मन अपनी बदली को कोस रहा था, जब अचानक ट्रेन के हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी। सामने से एक तेज़ रफ्तार ट्रेन धूल उड़ाती हुई आ रही थी। स्टेशन मास्टर ने अपनी हरी लालटेन लहराई, लेकिन तभी उसने ट्रेन के साथ एक और चीज़ देखी जो उतनी ही तेज़ गति से उसकी तरफ़ बढ़ रही थी।

स्टेशन मास्टर ने घबराकर सोचा, “यह कैसी बला है जो ट्रेन के साथ दौड़ रही है? अरे! यह तो मेरी ओर ही आ रही है।” इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, वह अज्ञात चीज़ एक चीख के साथ उसके शरीर से गुज़री, और स्टेशन मास्टर के शरीर के चिथड़े उड़ गए। यह घटना आज से चौबीस साल पहले हुई थी।

चौबीस साल बाद, अनिल एक सुनसान स्टेशन पर पहुंचा। यह जगह किसी श्मशान की तरह वीरान थी, न कोई इंसान, न कोई परिंदा। उसे सिर्फ एक व्यक्ति दिखा, जिससे वह अपनी मुंबई जाने वाली ट्रेन के प्लेटफॉर्म के बारे में पूछने चला। अनिल ने कई बार आवाज़ दी, “सुनिए भाई साहब, ये मुंबई जाने वाली ट्रेन किस प्लेटफॉर्म पर आएगी?”

जब कोई जवाब नहीं आया, तो अनिल उस शख्स के क़रीब गया। उसने जो देखा, उससे उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। वह आदमी अपने हाथों से स्टेशन पर लिखे नाम ‘भोजपुर’ को काटकर उसकी जगह ‘मौतपुर’ लिख रहा था, और उसके हाथ लहूलुहान थे। उस पागल आदमी ने अनिल को देखते ही कहा, “भाग जा यहां से! वो… वो आएगी और तेरे जिस्म को भी चीरते हुए निकल जाएगी। अगर अपनी जान प्यारी है तो चला जा यहां से।”

इतना कहकर वह पागल शख्स खुद ही वहां से भाग गया। तभी किसी ने अनिल की पीठ थपथपाते हुए कहा, “आप कौन हैं और इस वक्त यहां स्टेशन पर क्या कर रहे हैं?” यह स्टेशन मास्टर था। अनिल ने बताया कि उसे मुंबई जाना है और उसकी टिकट दिखाते हुए कहा कि उसे प्लेटफॉर्म नंबर नहीं पता।

स्टेशन मास्टर ने कहा, “अच्छा तो तुम हो वो पहले यात्री जो चौबीस साल बाद इस स्टेशन से अपनी ट्रेन पकड़ेगा।” अनिल हैरान रह गया, “चौबीस साल बाद? आप यह क्या कह रहे हैं?” स्टेशन मास्टर ने समझाया, “हां, क्योंकि इन चौबीस सालों में इस स्टेशन पर एक भी ट्रेन नहीं रुकी, और अगर रुकी भी, तो उसने किसी को जिंदा नहीं छोड़ा।”

अनिल घबरा गया और पूछा, “ऐसा क्या हुआ था चौबीस साल पहले? और कौन लोगों को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे? स्टेशन मास्टर साहब, मुझे डर लग रहा है।” स्टेशन मास्टर ने उसे ढांढस बंधाते हुए कहा, “डरते क्यों हो? उसने अपना इंतकाम ले लिया है। अब वह किसी को नहीं मारेगी। चलो, मैं तुम्हें इस स्टेशन की कहानी सुनाता हूं। वैसे भी तुम्हारी ट्रेन आने में अभी वक्त है।”

स्टेशन मास्टर ने कहानी शुरू की। “आज से चौबीस साल पहले यहां मनोहर नाम का एक स्टेशन मास्टर था।” अतीत में झांकते हुए, मनोहर अपनी बेटी लक्ष्मी से कहता है, “बेटी लक्ष्मी, आज फिर तेरी वजह से मैं देर हो जाऊंगा। तू रोज़ ऐसा ही करती है।” लक्ष्मी जवाब देती है, “पिताजी, बस एक मिनट। यह लीजिए, पहले आप ये स्वेटर पहनिए और मफलर भी। बाहर बहुत सर्दी है। अगर मैं न रहूं, तो आप दो दिन में ही अपनी तबीयत खराब कर लेंगे।”

मनोहर मुस्कुराते हुए कहता है, “हां हां, देख रहा हूं, तुम बेटी से धीरे-धीरे मेरी मां बनती जा रही हो। तू तो शादी करके अपने घर चली जाएगी, मुझे तो अकेला ही रहना है।” लक्ष्मी तुरंत जवाब देती है, “मैं कहीं नहीं जाने वाली आपको छोड़कर। और अगर किसी ने मुझे आपसे दूर करने की कोशिश भी की ना, तो मैं उसका खून पी जाऊंगी।” मनोहर हंसते हुए कहता है, “तेरा गुस्सा हमेशा नाक पर रहता है। पता नहीं अपने पति का क्या हाल करेगी तू? चल, अब मैं चलता हूं, मेरी ट्रेन आने वाली है। अगर समय पर सिग्नल नहीं दिया, तो हज़ारों पैसेंजर बेवजह परेशान होंगे।”

उसी वक्त, एक ट्रेन के कंपार्टमेंट में सुरेश, अमन और राहुल नाम के तीन दोस्त थे। सुरेश ने कहा, “यार अमन, घंटों से ऐसे ही चले जा रहे हैं। क्या बकवास ट्रेन है यह? हम तीनों के अलावा और कोई नहीं है पूरे कंपार्टमेंट में।” राहुल ने भी सहमति जताई, “हां अमन, सुरेश बिल्कुल ठीक कह रहा है। अरे! जब अकेले ही जाना था, तो गाड़ी से आ जाते। यह ट्रेन में खटर-खटर करते हुए आने की क्या ज़रूरत थी?”

अमन ने उन्हें चुप रहने को कहा, “अरे! चुप बैठो तुम दोनों, बहुत सुन ली तुम्हारी। जिन लड़कियों से बात करी थी साथ चलने की, वो तो आईं नहीं, तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं?” सुरेश ने मज़ाक में कहा, “लड़कियां साथ नहीं आईं तो क्या हुआ? रास्ते से किसी को उठा लें? वैसे भी तेरा बाप मिनिस्टर है। फिर किस बात की टेंशन है तुझे?” अमन यह सुनकर बोला, “अच्छा रुको, मैं करता हूं कुछ इंतज़ाम। सबको मज़ा आएगा।”

इधर, मनोहर अपना खाना और गर्म कपड़े घर पर भूल गया था, इसलिए लक्ष्मी घर से खाना और गर्म कपड़े लेकर स्टेशन की ओर निकली। स्टेशन पहुंचकर उसने मनोहर से कहा, “आज फिर सब कुछ भूलकर काम पर चले आए ना? मैं ना रहूं, तो पता नहीं आप अपना ख्याल कैसे रखेंगे?” मनोहर ने जवाब दिया, “अच्छा हुआ तू आ गई, बहुत तेज़ भूख लगी हुई है।”

मनोहर की भूख की बात सुनकर, लक्ष्मी ने उसे खाने का डिब्बा, स्वेटर और मफलर पकड़ाते हुए कहा, “अच्छा रुको, मैं अभी पानी लेकर आती हूं। फिर दोनों साथ खाना शुरू करेंगे।” इतना कहकर लक्ष्मी पानी लेने के लिए बढ़ी ही थी कि तभी एक ट्रेन आकर स्टेशन पर खड़ी हुई। स्टेशन पर आवाज़ गूंजी – “यात्रीगण कृपया ध्यान दें… मुंबई जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर दो पर आ चुकी है।”

लक्ष्मी पानी लेने जा रही थी कि तभी ट्रेन का दरवाज़ा खुला और अमन, सुरेश और राहुल तीनों दरवाज़े पर खड़े लक्ष्मी को देखकर हंस रहे थे। राहुल ने कहा, “अरे! मौका सही है। मैं तो कहता हूं उठा ले।” सुरेश ने भी कहा, “हां अमन, उठा ले। किसी को कुछ पता नहीं चलेगा। न ट्रेन के कंपार्टमेंट में कोई है, न स्टेशन पर। जब किसी को कुछ पता ही नहीं चलेगा, तो फिर डर कैसा? और भूल मत, तेरा बाप मिनिस्टर है, मिनिस्टर।”

राहुल और सुरेश की बातें सुनकर, अमन दबे पैरों से लक्ष्मी के पास आया और उसे ज़बरदस्ती अपनी तरफ़ खींचने लगा। राहुल और सुरेश भी उसकी मदद करने लगे। लक्ष्मी चीख़ते हुए बोली, “पिताजी! बचाओ मुझे। पिताजी, ये लोग ज़बरदस्ती मुझे ट्रेन के अंदर ले जा रहे हैं।” लक्ष्मी की चीख़ सुनकर मनोहर तुरंत अपनी बेटी को बचाने दौड़ा, लेकिन तब तक अमन, राहुल और सुरेश लक्ष्मी को ट्रेन के अंदर लाकर दरवाज़ा बंद कर चुके थे।

मनोहर गिड़गिड़ाते हुए बोला, “मेरी बेटी को छोड़ दो। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं। छोड़ दो मेरी बेटी को।” मनोहर अपनी बेटी को बचाने के लिए हाथ जोड़ ही रहा था कि ट्रेन भी चलने लगी। मनोहर भी ट्रेन के साथ-साथ दौड़ने लगा। लक्ष्मी किसी तरह खुद को बचाकर खिड़की के पास आ गई और अपने पिता को देखकर रोते हुए बोली, “पिताजी, मुझे बचा लो। ये लोग बहुत गंदे लोग हैं।”

लक्ष्मी रोते हुए बोल ही रही थी कि अमन ने उसके बाल पकड़े और उसे खिड़की में दे मारा, जिससे उसके सिर से खून निकलने लगा। लक्ष्मी के साथ यह सब होता देख मनोहर को सदमा लग गया था। लेकिन ट्रेन की रफ्तार इतनी तेज़ हो चुकी थी कि मनोहर का पैर फिसला और एक चीख़ के साथ ट्रेन ने उसके भी टुकड़े कर दिए।

अपने पिता की चीख सुनकर लक्ष्मी को पता चल गया कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं। उसने थोड़ी हिम्मत दिखाई और अमन का मुंह नोच कर वह दरवाज़े पर आ खड़ी हुई और उन तीनों से कहा, “जिस तरह तुमने मेरी दुनिया उजाड़ दी है, मैं भी तुमको मिट्टी में मिला दूंगी। याद रखना… मैं जब तक तुम लोगों के खून से नहा नहीं लेती, मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।”

अनिल ने स्टेशन मास्टर से पूछा, “पर आपने तो कहा था कि लक्ष्मी ने अपना बदला ले लिया है। उसने तो ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी थी। फिर उसका बदला कब पूरा हुआ?” स्टेशन मास्टर ने समझाया, “लक्ष्मी की मौत के बाद उसकी आत्मा इस स्टेशन से गुज़रने वाली हर ट्रेन का पीछा करती थी और जो भी उसके रास्ते में आता, वो उसके चिथड़े उड़ा देती।”

“इस डर से पैसेंजर ने यहां उतरना बंद कर दिया और धीरे-धीरे ट्रेनें भी यहां नहीं रुकने लगीं। लेकिन फिर उस ऊपर वाले ने अपना इंसाफ दिखाया और चौबीस साल बाद फिर से वो तीनों एक साथ इसी रास्ते से मुंबई जा रहे थे।” स्टेशन मास्टर ने अपनी कहानी जारी रखी, “तभी लक्ष्मी की आत्मा प्रकट हुई। उसने कहा, ‘आज मैं खून से नहाऊंगी। तुम तीनों की मौत से नहाऊंगी। आज वो दिन आ गया है। तुम ने मुझे बर्बाद कर दिया। मुझसे सब कुछ छीन लिया। मैं तुम्हें ज़िंदा नहीं छोडूंगी।’”

थोड़ी ही देर में लक्ष्मी ने राहुल और सुरेश की गर्दन को उनके धड़ से अलग कर दिया और वे तड़प-तड़प कर मर गए। लक्ष्मी ने जिस भयानक तरीके से राहुल और सुरेश को मारा था, वह देखकर अमन की रूह कांप गई। वह तुरंत लक्ष्मी की आत्मा के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, “मुझे मत मारो। मुझे माफ़ कर दे, मुझे माफ़ कर दे। मैंने अपने दोस्तों के बहकावे में आकर बहुत बड़ी गलती कर दी थी। मैं अपने गुनाह के लिए बहुत शर्मिंदा हूं।”

अमन ने आगे कहा, “मैं बस अपने पापा को ढूंढने जा रहा था। अगर पता होता कि तू मेरी मौत बनकर मेरा इंतज़ार कर रही है, तो मैं कभी इस रास्ते से नहीं गुज़रता।” लक्ष्मी ने एक भयानक हंसी हंसते हुए कहा, “मुझे पता था कि तू अपने बाप को ढूंढता हुआ इस रास्ते से ज़रूर गुज़रेगा। इसलिए मैंने तेरे बाप को पहले से ही अपने पास रखा हुआ है। वो देख…”

अमन ने जब लक्ष्मी की नज़रों का पीछा किया, तो उसे अपने सामने अपने मिनिस्टर पिताजी को देखा जो अपनी बाहें फैलाए अमन को गले लगाने को तैयार थे। लक्ष्मी ने कहा, “जिस तरह मेरे पिताजी मुझे तड़पता देख मर गए, उसी तरह तेरे पिताजी भी तुझे तड़पता देखकर मर जाएंगे।” अपने पिता को बाहें फैलाए देख अमन उनके गले लगने ही वाला होता है कि लक्ष्मी अमन के जिस्म में तेज़ी से गुज़रते हुए निकलती है और उसके जिस्म के चिथड़े उड़ा देती है।

यह सब देखकर अमन के पिता की चीख़ निकल जाती है और वे पागल हो जाते हैं। अनिल ने स्टेशन मास्टर से कहा, “तो वो जो पागल मैंने देखा था, वो अमन का बाप मिनिस्टर है।” स्टेशन मास्टर ने पुष्टि की, “हां, वो पागल अमन का बाप है। अब ये सब छोड़ो और अपनी ट्रेन पकड़ो।” अनिल उसी वक्त ट्रेन पकड़ता है और मुंबई शहर के लिए निकल जाता है, इस भयानक स्टेशन के रहस्य को अपने साथ लेकर।

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