ब्रह्मदैत्य का ब्रह्मास्त्र

आईने के सामने खड़ी मोइला अपने सीने पर उभरे त्रिशूल के निशान को भय से निहार रही थी। तभी एकाएक, उसका कमरा एक खंडहर में बदल गया, और शीशे पर दरारें पड़ने लगीं। जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उसे जकड़ लिया हो, वह घुटनों के बल बैठ गई, उसके हाथ ऐसे फैल गए मानो अदृश्य ज़ंजीरों में कस दिए गए हों। आँखों से आँसू नहीं, रक्त की धारा बह रही थी। चारों ओर नगाड़ों और शंखों की डरावनी आवाज़ें गूँजने लगीं। फिर एक भीषण आवाज़ आई, “देख क्या रहा है? धँसा दे त्रिशूल इसके सीने में और अलग कर दे इसके शरीर से उस ब्रह्म विद्यैत्य की आत्मा को।” इस आदेश के साथ ही, एक आकृति ने त्रिशूल मोइला के सीने में गाड़ दिया। वह दर्द से तड़प उठी, जैसे उसकी आत्मा शरीर से अलग हो रही हो।

अचानक रवीश की आवाज़ सुनाई दी, “मोइला! मोइला होश में आओ।” रवीश की पुकार से मोइला इस भयावह स्वप्न से बाहर तो आ गई, पर उस आतंक का साया अभी भी उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था। रवीश ने चिंता से कहा, “फिर से वही सब देखा तुमने? कितनी बार कहा है इस निशान को मत देखा करो, यह तुम्हें उन पुरानी भयानक यादों में खींच लेता है।” मोइला ने भारी मन से कहा, “मैं ठीक हूँ, रवीश। ये बुरे सपने तो अब मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं, शायद मेरी मौत के साथ ही इनका अंत होगा।” रवीश उसे ढाँढस बंधाते हुए बोला, “ऐसा मत कहो। बस कुछ दिन और, सब पहले जैसा हो जाएगा।”

मोइला ने रवीश की ओर देखते हुए कहा, “क्या पहले जैसा होगा रवीश? एक साल हो गया है ये सब झेलते हुए, पर तुम बताते ही नहीं कि मेरे साथ क्या हुआ था? मैं तुम्हें कैसे मिली, और मेरे सीने पर ये निशान कैसा है? क्यों इसे देखते ही मैं उस खौफ़नाक दुनिया में खो जाती हूँ?” उसकी आवाज़ में दर्द और बेचैनी थी। “रवीश, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, पर अगर आज तुमने मुझे सच नहीं बताया, तो मैं तुम्हें छोड़कर चली जाऊँगी।” इतना कहकर वह बाथरूम में घुस गई और अंदर से दरवाज़ा बंद कर फूट-फूटकर रोने लगी। रवीश ने उसे बाहर आने के लिए बहुत समझाया, पर मोइला ने इस बार बिना सच जाने बाहर न आने की ठान ली थी।

मजबूरन, रवीश ने बाथरूम के बाहर से ही उसे उस भयानक दास्तां को सुनाना शुरू किया, जिस वजह से मोइला यह सब झेल रही थी। बात आज से लगभग एक साल पहले की है, जब रवीश ने पहली बार मोइला को गुवाहाटी के बस स्टैंड पर देखा था। उसे देखते ही रवीश को पहली नज़र में उससे गहरा प्रेम हो गया था। उसके बाद वह रोज़ उस बस स्टैंड पर जाकर उसे चुपचाप निहारता रहता था, कभी किसी से बात करते हुए, तो कभी मूंगफली खाते हुए।

मोइला ने भी जल्द ही महसूस कर लिया था कि कोई उसे रोज़ चोरी-छिपे देखता रहता है। लेकिन वह उसे अनदेखा कर देती और रोज़ की तरह मोरी गाँव जाने वाली बस में बैठ जाती। रवीश ने सोचा कि ऐसे रोज़ ताकते रहने से कुछ नहीं होगा, उसे अब मोइला से बात करनी ही पड़ेगी। इसलिए एक दिन वह भी मोइला के पीछे मोरी गाँव की बस में चढ़ गया, पर पूरे रास्ते उसकी हिम्मत नहीं हुई कि वह उससे कुछ कह पाए।

बस से उतरते ही मोइला सड़क से हटकर जंगल के पथरीले रास्ते की ओर मुड़ गई। कुछ दूर चलने के बाद, उसने अचानक पीछे मुड़कर रवीश से कहा, “जान प्यारी है तो मेरा पीछा मत करो।” रवीश ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “पर कोई तुम्हारे इश्क़ में डूबकर मरना चाहे तो?” मोइला ने तल्ख़ी से कहा, “बकवास बंद करो और पीछे देखो। लगता है कोई तुम्हें बुला रहा है।” रवीश ने पीछे मुड़कर देखा तो वहाँ दूर-दूर तक कोई नहीं था, और बस भी बहुत आगे निकल चुकी थी। जब वह वापस घूमा, मोइला भी कहीं नहीं दिख रही थी। रवीश समझ गया कि मोइला उसे मूर्ख बनाकर चली गई है।

अगले दिन रवीश फिर से बस स्टैंड पर उसका इंतज़ार करने लगा। हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। तभी उसने देखा कि लाल साड़ी में भीगी हुई मोइला बस स्टैंड की तरफ ही आ रही थी। उसकी इठलाती चाल देख रवीश पूरी तरह से उसमें खोता जा रहा था। आसमान में काले बादल गहराने लगे थे, जिससे दिन के उजाले ने रात की काली चादर ओढ़ ली थी। इसी बीच, रवीश अपने छाते के साथ उसकी तरफ बढ़ा और मोइला को अपने छाते के साए में ले लिया। मोइला पहले तो थोड़ा झिझकी, फिर धीरे-धीरे उससे बातचीत शुरू कर दी। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई।

यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा। मोइला अपना सफर पूरा करने के लिए बस में चढ़ जाती और रवीश भी बिना किसी मंज़िल के उसके साथ बस में बैठ जाता, उसका हमसफ़र बन। हर रोज़ मोइला के बस से उतरने के बाद, जंगल में चले जाने पर रवीश भी वापस लौट आता था। पर उस दिन, न जाने क्यों, रवीश भी मोइला के साथ बस से उतर गया और फिर से उसके पीछे-पीछे चलने लगा। मोइला ने उसे रुकने को कहा, “रवीश, मेरे पीछे मत आओ। यहाँ से लौट जाओ। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती।”

मोइला की इस बात पर रवीश ने उससे कहा, “ऐसा क्यों बोल रही हो तुम? अभी तो हमारा मिलना पूरा भी नहीं हुआ और तुम खोने की बात करती हो। आज मैं तुम्हें कुछ साफ़-साफ़ बताना चाहता हूँ, मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ। प्लीज़ मुझे अपनी ज़िंदगी में जगह दे दो।” मोइला ने कहा, “रवीश, मैं प्यार नहीं कर सकती, मुझे इसकी इजाज़त नहीं है।” मोइला के मुँह से यह सुनकर रवीश बोला, “इजाज़त नहीं है? मोइला, प्यार हो जाता है, उसे किसी की परमिशन नहीं लेनी होती है। अगर तुम मुझे पसंद नहीं करती, तो साफ़-साफ़ शब्दों में कहो, मैं कभी दोबारा अपना चेहरा नहीं दिखाऊंगा।”

रवीश के ये शब्द सुनते ही मोइला की आँखों से आँसू बहने लगे। वह बोली, “रवीश, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती हूँ, पर हम कभी एक नहीं हो सकते।” रवीश ने झुंझलाते हुए पूछा, “आखिर क्यों मोइला?” और उसका हाथ पकड़ लिया। दोनों एक पल को एक-दूसरे के करीब आ ही रहे थे कि अचानक आसमान में ज़ोर से बिजली चमकी। तभी रवीश को मोइला के भीतर एक भयानक राक्षस दिखाई दिया। यह देख रवीश ने मोइला को खुद से दूर झटक दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसने अभी-अभी क्या देखा था, क्योंकि मोइला को छूते ही उसे उसमें कोई और ही दिखने लगा था। क्या माजरा था?

मोइला ने डबडबाई आँखों से कहा, “रवीश, तुम्हें मुझे भूलना होगा। मेरे शरीर पर एक ब्रह्मदैत्य का कब्ज़ा है।” उसने बताया कि उसके परदादा ने एक ब्राह्मण का अपमान कर उसकी हत्या कर दी थी, यह कहकर कि वे भिक्षा माँगने वाले से अपनी बेटी नहीं ब्याहेंगे। मरते-मरते उस ब्राह्मण ने शाप दिया कि वह कभी इस परिवार की बेटी की शादी नहीं होने देगा। उसकी मृत्यु राक्षस योनि में हो रही है, इसलिए अब वह ब्राह्मण राक्षस बनकर उनके परिवार के लिए काल बन जाएगा। उस दिन से आज तक, उनके परिवार की किसी भी बेटी ने न तो कभी शादी की और न ही उसे प्रेम का कोई सुख मिला। जिसने भी अपने हिस्से का प्यार पाने की कोशिश की, उसे केवल मौत ही मिली।

मोइला की बात सुनकर एक पल को रवीश भीतर तक सिहर उठा। पर रवीश के लिए यह कहानी नई नहीं थी। वह भी इस कथा को बचपन से सुनता आ रहा था। बस उसे यह नहीं पता था कि उसे उसी परिवार की लड़की से प्यार हो जाएगा, जिनके कारण लगभग एक सदी पहले उसके परिवार के एक सदस्य की जान गई थी। यानी, जिस ब्राह्मण ने मोइला के परिवार को श्राप दिया था, वह ब्राह्मण रवीश के परिवार का सदस्य था। पर रवीश के मन में बदले की कोई भावना नहीं थी।

बल्कि, वह तो खुद इन चीज़ों को बदलना चाहता था। और अब उसके सामने एकमात्र यही लक्ष्य था कि किसी भी तरह से मोइला को इस श्राप से मुक्ति दिला दे। यह सब सोचते हुए उसने मोइला की तरफ बढ़ते हुए कहा, “मोइला, मेरा नाता उसी परिवार से है जिसकी वजह से तुम्हारा यह हाल है, पर मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि मैं सब ठीक कर दूँगा।” रवीश के मुँह से यह सुनकर मानो मोइला के पाँव तले ज़मीन खिसक गई हो। पर मोइला के दिमाग में क्या चल रहा था, यह कोई नहीं जानता था।

वह बुत बनी बस अपनी आँखों से आँसू बहाए जा रही थी। फिर जैसे ही रवीश उसे अपने साथ चलने को बोला, वह एक कदम भी नहीं हिली और बोली, “रवीश, मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ, पर मुझे नहीं पता था कि तुम उसी राक्षस के परिवार से हो जिसने मेरी ज़िंदगी हर पल जहन्नुम बना दी। लेकिन अब और नहीं होगा, क्योंकि मैं अपने परिवार की आखिरी अनाथ बेटी हूँ। न मैं ज़िंदा रहूँगी, न हमारे परिवार में कोई और बेटी जन्म लेगी, और न उसे इस तरह तिल-तिल कर मरना पड़ेगा। आज तुम्हारा प्यार ही मेरी मौत का कारण बनेगा।”

मोइला के हर शब्द के साथ, वह अपने अंत की ओर बढ़ी, जैसे उसे मरने की कोई फ़िक्र न हो। उधर रवीश मोइला को अपनी तरफ आते देख उलटे कदम पीछे हट रहा था। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, मोइला ने रवीश को कसकर अपनी बाहों में भर लिया और उसके होठों को चूमने लगी। उन दोनों के इस मिलन से प्रकृति भी डोल उठी। आसमान में बादल दहाड़ मारने लगे, जानवर चीखने लगे, और चारों तरफ़ तेज़ तूफ़ान उठ गया।

रवीश ने एक झटके में मोइला को खुद से अलग कर दिया। उसी क्षण, उसके अंदर छिपे ब्रह्मदैत्य ने मोइला को तिल-तिल कर मारना शुरू कर दिया। अब मोइला के अंदर इतनी भी शक्ति नहीं बची थी कि वह खड़ी हो सके। वह वहीं बैठ दर्द से चीखने लगी, और उसकी दोनों आँखों से ख़ून के आँसू निकलने लगे, जिससे उसका शरीर ख़ून से लथपथ हो गया था। मोइला की यह हालत रवीश देख नहीं पा रहा था, इसलिए उसने उसे अपने गाँव मोयांग ले जाने का सोचा।

लेकिन इससे पहले, उसने अपने हाथ में बँधा हुआ रक्षा सूत्र निकाला और ऊपर देखते हुए मंत्रों के ज़रिये महाकाल की आराधना करने लगा। फिर उसने सुरक्षा सूत्र को मोइला के गले में माला बनाकर पहनाया और उसे अपनी गोद में उठाकर जंगल के रास्ते अपने गाँव मायोम की तरफ़ निकल गया। उस ब्रह्मदैत्य ने अपने रास्ते में कई जगह तरह-तरह से रवीश को रोकने की कोशिश की, पर वह रवीश को रोक नहीं पाया।

अब रवीश तंत्र-मंत्र और काले जादू के केंद्र अपने गाँव पहुँच गया, जहाँ जंगल से घिरे एक बड़े मैदान के बीचोबीच एक विशाल अग्निकुंड था, और चारों तरफ़ अघोरी के भेष में खड़े लोग एक धुन में नगाड़े बजा रहे थे। रवीश मोइला को अपनी गोद में लिए अग्निकुंड के पास बैठी एक सिद्ध साध्वी की तरफ़ बढ़ा और दर्द भरी आवाज़ में बोला, “तंत्रा माँ, बचा लो मेरी मोइला को। बचा लो इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।”

रवीश की आवाज़ सुनकर भी वह साध्वी अपनी आँखें नहीं खोलती, बस रवीश से कहती है, “लौटकर आ गया फिर से शस्त्र रवीश इस मंत्र की दुनिया में? पर तुमने तो कहा था कि अब इस तंत्र-मंत्र की ज़रूरत किसी को नहीं है।” रवीश ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, “तंत्रा माँ, मेरी कही हुई बातों को भूल जाइए। मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ। मेरी मोइला की जान बचा लीजिए।” रवीश की बात सुनकर साध्वी अपनी आँखें खोलती हैं और कहती हैं, “अरे मूर्ख! उसे तो तुमने तभी बचा लिया था जब तुमने उसकी रक्षा के लिए महाकाल का मंत्र जागृत किया, पर उसके रूह से ब्रह्मदैत्य को आज़ाद करना इतना आसान नहीं है।”

साध्वी ने आगे कहा, “इसके लिए तंत्र और मंत्र की कड़ी साधना करनी होगी और ब्रह्म शस्त्र पाना होगा।” इतना कहकर तंत्रा माँ अपने आजू-बाजू में बैठे साध्वियों को इशारा करती हैं, और वे रवीश की गोद से मोइला को ले जाकर अग्निकुंड के पास लिटा देती हैं। उधर तंत्रा माँ ने रवीश को सब कुछ समझा दिया था, जिसके बाद अंत में वह कहती हैं, “रवीश, दिन का यह पहर भी शुरू हो गया है। सूर्यास्त से पहले तुम्हें पहाड़ी से वह त्रिशूल लाकर ब्रह्मपुत्र नदी में उसकी शुद्धि कर यहाँ पहुँचना होगा, नहीं तो यह लड़की नहीं बचेगी।”

रवीश ने संकल्पपूर्वक कहा, “आशीर्वाद दीजिए, तंत्रा माँ। सूर्यास्त से पहले लौट आऊँगा और अपने पूर्वज के कलंक को मिटाऊँगा। मैं इसे यूँ ही मरने नहीं दे सकता।” तंत्रा माँ आँखें बंद कर रवीश को आशीर्वाद देती हैं, और वह तेज़ी से उस पहाड़ी की तरफ़ निकल जाता है। कभी जंगली जानवर, तो कभी कोई अँधा दलदल, रवीश सभी बाधाओं को पार करते हुए ऊपर पहाड़ी की गुफ़ा में पहुँच गया, जहाँ वह सिद्ध त्रिशूल गढ़ा हुआ था। रवीश उसके सामने नतमस्तक हो उसे पहाड़ी से निकाल लेता है और पहाड़ी से थोड़ा नीचे झील में छलांग लगा देता है।

इतनी ऊँचाई से छलांग लगाने के कारण एक पल को रवीश की हालत बिगड़ जाती है और उसके हाथ से त्रिशूल छूटकर पानी के साथ बहने लगता है। पर तभी उसकी आँखों के सामने एक ऐसा दृश्य आता है जैसे मोइला उससे दूर जा रही हो। जिसके बाद वह एक झटके में आँखें खोलता है और तैरकर त्रिशूल को पकड़ लेता है। तभी उसकी नज़र पड़ती है कि सूर्यास्त होने ही वाला है। उधर मोइला की हालत बिगड़ती जा रही थी। अब ब्रह्मदैत्य उस पर और भी ज़्यादा हावी होने लगा था, इतना कि मोइला खुद अपने हाथों से खुद को नुक़सान पहुँचाने लगी थी।

जिस वजह से मोइला के हाथ और पैर को ज़ंजीरों से बाँधना पड़ा। मोइला की हालत देख तंत्रा माँ ऊपर देखते हुए कहती हैं, “रवीश, इससे पहले कि सूर्य अस्त हो जाए, आ जाओ बेटा, नहीं तो यह ब्रह्मदैत्य जीत जाएगा।” यह कहते हुए जैसे ही तंत्रा माँ अपनी आँखें नीचे करती हैं, उनकी आँखों के ठीक सामने रवीश ऊपर से नीचे पानी में सराबोर खड़ा था। तंत्रा माँ ने आदेश दिया, “देख क्या रहा है रवीश, देर मत कर, धँसा दे त्रिशूल को इसके सीने में और इसके शरीर से उस ब्रह्मदैत्य की आत्मा को बाहर निकाल दे।”

तंत्रा माँ की बात सुनकर रवीश त्रिशूल के सिरे को मोइला के सीने में धँसा देता है, जिसके बाद मोइला के शरीर में ऐसा लगता है जैसे उसे दो हिस्सों में बाँटा जा रहा हो। त्रिशूल के अंदर जाते ही उसके शरीर से एक काला साया निकलने लगता है। इसके बाद मोइला बेहोश हो जाती है। मोइला के बेहोश होते ही तंत्रा माँ, उनके साथी और बाकी साध्वियाँ मोइला के उपचार में लग जाते हैं। मोइला कई दिनों तक अपनी आँखें नहीं खोलती, और जब खोलती है तो रवीश को अपने पास पाती है। सीने पर त्रिशूल का वह गहरा ज़ख्म अब उसे परेशान करने लगा था।

यह सारी बातें बताते हुए रवीश बाथरूम के बाहर बैठ रोने लगता है और कहता है, “मोइला, मैं सचमुच तुम्हें खोना नहीं चाहता था, पर अब फ़ैसला तुम्हारा होगा। अगर तुम मुझे छोड़कर जाना चाहती हो तो जा सकती हो।” दूसरी तरफ बैठी मोइला भी रवीश की बातें सुन रही थी, जो एक झटके में दरवाज़ा खोलकर बाहर आ जाती है और रवीश को गले लगा लेती है। बाहों में भरते हुए वह कहती है, “आज के बाद अलग होने की बात मत करना, मैं अपनी बाकी उम्र तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ।” मोइला को उसके सारे सवालों के जवाब मिल चुके थे, और वह अब अपने उस निशान की तरफ़ भी ध्यान नहीं देती थी। पर अब भी उसे बुरे सपने आते रहते हैं, जिसमें वह ब्राह्मराक्षस कहता है, “मोइला, मैं लौटकर ज़रूर आऊँगा।”

परछाई का साया

अमित को हमेशा से पुरानी, वीरान जगहों में एक अजीबोगरीब आकर्षण महसूस होता था। जब उसे अपने परदादा की दूरदराज ...

हवेली का शाप

एक ठंडी, बरसाती रात थी जब विक्रम सुनसान सड़क पर अपनी गाड़ी चला रहा था। शहर से दूर, एक पुराने ...

प्रेतवाधित गुड़िया का रहस्य

अंजलि ने शहर की हलचल से दूर, एक शांत गाँव में स्थित पुराना पुश्तैनी घर खरीदा। उसे लगा था कि ...

वीरान हवेली का रहस्य

रोहन अपने दोस्तों के साथ गांव के किनारे बनी वीरान हवेली के सामने खड़ा था। यह हवेली कई सालों से ...

लालची सास का श्राप

ममता देवी का गुस्सा सातवें आसमान पर था। उन्होंने राहुल से कहा, "इस अभागन के पेट में फिर से लड़की ...

प्रेतवाधित कलाकृति का अभिशाप

पुराने शहर के एक सुनसान कोने में, एक पेंटर रहता था जिसका नाम था रमेश। उसकी कला में एक अजीबोगरीब ...

भूतिया गुफा का खौफ

मोहन नगर राज्य में राजा विक्रम सिंह का राज था, जहाँ समृद्धि पर एक प्राचीन अभिशाप का साया मंडरा रहा ...

ब्रह्मदैत्य का ब्रह्मास्त्र

आईने के सामने खड़ी मोइला अपने सीने पर उभरे त्रिशूल के निशान को भय से निहार रही थी। तभी एकाएक, ...

वीरान गाँव का रहस्य

राजन एक अकेले यात्री था जो पहाड़ों में एक नया रास्ता खोजने निकला था। सूरज ढलने लगा और घना कोहरा ...

काल भैरवी का क्रोध

कालीबाड़ी गाँव में हर तीन साल पर काल भैरवी की एक विशेष आरती होती थी। यह एक प्राचीन परंपरा थी, ...

प्रेतवाधित हवेली का निर्माण

माया ने शहर की भागदौड़ से दूर, एक छोटे, शांत गाँव में एक पुराना मकान किराए पर लिया। मकान थोड़ा ...

अंधेरे की आहट

माया ने शहर की भागदौड़ से दूर, एक छोटे, शांत गाँव में एक पुराना मकान किराए पर लिया। मकान थोड़ा ...