मोहन नगर राज्य में राजा विक्रम सिंह का राज था, जहाँ समृद्धि पर एक प्राचीन अभिशाप का साया मंडरा रहा था। कुछ समय पहले पड़ोसी राज्य ने एक चमत्कारी मुकुट चुरा लिया था, लेकिन उस मुकुट का रहस्य पड़ोसी राजा भी कभी नहीं जान पाया। मुकुट को वापस लाना किसी चुनौती से कम न था, क्योंकि ऐसी अफवाहें थीं कि उसे छूने वाले पर एक भयानक प्रेत का प्रकोप होता है।
एक दिन दरबार में राजा ने मंत्री से मोहन नगर की कुशलता पूछी। मंत्री ने बताया कि सब कुशल है, पर पुश्तैनी मुकुट का पता नहीं चला और कुछ दिनों से दो संदिग्ध व्यक्ति राज्य में घूम रहे हैं। राजा ने उनकी जल्द से जल्द शिनाख्त करने का आदेश दिया, ताकि राज्य सुरक्षित रह सके। सिपाही उन संदिग्धों की तलाश में निकल पड़े।
जंगल की घनी झाड़ियों में गुड्डू और बबलू नाम के दो भाई छिपे थे। उन्हें राज्य के सिपाही खोज रहे थे। गुड्डू घबराया हुआ था, “अरे! हमने नहीं सोचा था कि मुकुट लाने की यह यात्रा इतनी खतरनाक होगी।” बबलू बोला, “हाँ, गुरुजी ने हमें फंसा दिया। अगर हम पकड़े गए, तो पता नहीं ये सैनिक हमारा क्या करेंगे?” उन्होंने पीछे मुड़कर गुरुजी को मुंह दिखाने से मना कर दिया।
सैनिकों ने थककर एक पेड़ के नीचे आराम किया। एक सैनिक ने कहा, “हमें उनकी शक्ल भी नहीं पता, कैसे ढूंढेंगे?” गुड्डू ने मौके का फायदा उठाकर सैनिक के पास जाकर पानी मांगा। सैनिकों को लगा वे थके हुए यात्री हैं और उन्हें पानी पिलाया। पानी पीने के बाद, गुड्डू ने मुस्कुराकर कहा, “हम आप लोगों से ही तो भाग रहे थे, श्रीमान!”
गुड्डू और बबलू ने भागना शुरू किया, सैनिक उनके पीछे दौड़े। तभी उन्हें एक पुरानी, अंधेरी गुफा दिखाई दी। बिना सोचे समझे, वे उसमें घुस गए। सैनिक भी गुफा में घुसने का प्रयास करने लगे, लेकिन तभी एक भयानक जिन्न गुफा के द्वार पर प्रकट हो गया। उसकी डरावनी आँखों को देखकर सभी सिपाही दहशत में पीछे हट गए।
जिन्न ने गरजते हुए कहा, “कौन हो तुम और इस मौत के द्वार पर क्यों आना चाहते हो?” सिपाही ने हिम्मत करके पूछा कि उसने उन युवकों को अंदर क्यों जाने दिया। जिन्न हँसा, “यह कोई घर नहीं, मौत का द्वार है। अगर तुम्हें भी मौत चाहिए, तो स्वागत है!” सिपाही समझ गए कि जो भी अंदर गया, वह कभी वापस नहीं आएगा, और उन्होंने राजा को जाकर यही बताया।
गुफा के भीतर गुड्डू और बबलू बुरी तरह डरे हुए थे। गुफा का वातावरण भयानक और दुर्गंधपूर्ण था, मानो सदियों के सड़े हुए रहस्य उसमें समाए हों। तभी उनके सामने एक बहुत बूढ़ी औरत प्रकट हुई, जिसकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं। बबलू ने कांपते हुए पूछा, “आप कौन हैं और यहाँ क्या कर रही हैं?”
बूढ़ी औरत ने धीमी, कर्कश आवाज में कहा, “मैं यहाँ राजमुकुट की रखवाली करती हूँ, बच्चों।” गुड्डू ने हैरानी से पूछा, “राजमुकुट आपके पास है?” बूढ़ी औरत ने जवाब दिया कि वह सिर्फ उसकी रखवाली करती है। बबलू को कुछ याद आया, गुरुजी ने कहा था कि रास्ते में भ्रम पैदा करने वाली जादुई शक्तियाँ मिलेंगी, जिनके चंगुल में नहीं फंसना है।
गुरुजी ने उन्हें चेतावनी दी थी कि रास्ते में उन्हें मानव रूपी जादुई शक्तियाँ मिलेंगी जो उन्हें भ्रमित करेंगी, और उन्हें किसी पर भरोसा नहीं करना है। बबलू ने गुड्डू से कहा, “यह बूढ़ी औरत वही है जिसके बारे में गुरुजी ने बताया था।” गुड्डू ने बूढ़ी औरत से बाहर जाने का रास्ता पूछा, लेकिन वह उन्हें राजमुकुट लेने के लिए जोर दे रही थी।
बूढ़ी औरत ने क्रोधित होकर कहा, “मैंने कहा, मेरे साथ आओ नहीं तो मारे जाओगे!” गुड्डू ने साहस बटोरकर कहा कि उनकी बातें उन पर काम नहीं करेंगी। बबलू ने हिम्मत करके बूढ़ी औरत को छुआ, और वह पल भर में हवा में विलीन हो गई, उसकी जगह एक भयानक प्रेत छाया छोड़ गई जो दीवारों पर मंडराने लगी।
गुड्डू और बबलू गुफा से बाहर निकलने का रास्ता खोजने लगे। तभी उन्हें एक तेज प्रकाश दिखा। खुशी से झूमते हुए वे उस ओर दौड़े, लेकिन वहाँ कोई रास्ता नहीं था। एक सुंदर परी खड़ी थी, जिसकी छड़ी से प्रकाश आ रहा था। परी ने कहा, “मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ।” गुड्डू उसकी सुंदरता पर मोहित हो गया, पर बबलू ने गुरुजी की चेतावनी याद दिलाई।
बबलू ने परी से गुफा से बाहर जाने का रास्ता पूछा। परी ने कहा कि उन्हें उसके राक्षस को हराना होगा। गुड्डू ने पूछा कि वह उनके लक्ष्य के बारे में कैसे जानती है। परी ने मुस्कुराते हुए कहा, “जो भी राजमुकुट की तलाश में यहाँ आता है, मैं सबका लक्ष्य पहचानती हूँ। आज तक कोई मेरे राक्षस को हरा नहीं पाया है।”
तभी एक विशालकाय, भयानक राक्षस प्रकट हुआ, जिसकी गर्जना से पूरी गुफा कांप उठी। गुड्डू और बबलू डर गए, पर उन्होंने हिम्मत जुटाई और राक्षस पर हमला कर दिया। राक्षस ने उन्हें झटके से उठा कर दूर फेंक दिया, परी हंस रही थी। वे फिर उठे और लगातार लड़ते रहे, जब तक कि राक्षस थक कर गिर न गया। परी का चेहरा उतर गया।
परी ने अनिच्छा से कहा, “तुमने खुद को सिद्ध किया है। राजमुकुट मेरे पास है, लेकिन इसका एक मूल्य चुकाना होगा।” उसने एक राजमुकुट बबलू के हाथ में दे दिया। मुकुट छूते ही एक तेज प्रकाश फैला, और उनकी आँखें बंद हो गईं। जब आँखें खुलीं, तो वे गुफा के बाहर खड़े थे, लेकिन उनके गुरुजी या राजा विक्रम कहीं नहीं थे।
उनके सामने फैला था एक उजाड़ जंगल, और मुकुट उनके हाथों में चमक रहा था। बबलू और गुड्डू ने महसूस किया कि उनके अंदर कुछ बदल गया है। उनकी त्वचा फीकी पड़ गई थी, उनकी आँखें गहरे गड्ढे बन गई थीं, और उनके दिल में एक अजीब सी ठंडी, काली शक्ति धड़क रही थी। वे समझ गए कि मुकुट ने उन्हें अमर तो कर दिया, पर एक भयानक शापित अस्तित्व में बदल दिया था। मोहन नगर की खुशहाली के बजाय, उन्होंने खुद को एक अंतहीन आतंक के साथ अभिशप्त पाया था।