वीरान हवेली का रहस्य

रोहन अपने दोस्तों के साथ गांव के किनारे बनी वीरान हवेली के सामने खड़ा था। यह हवेली कई सालों से खाली पड़ी थी और उसके बारे में अनगिनत डरावनी कहानियाँ प्रचलित थीं। दोस्तों ने उसे हवेली में एक रात बिताने की चुनौती दी, लेकिन जैसे ही अंधेरा गहराया, सब पीछे हट गए। रोहन, अपनी बहादुरी साबित करने के लिए अकेला ही अंदर जाने का फैसला किया। जैसे ही उसने भारी लकड़ी का दरवाजा खोला, अंदर से सड़ी हुई लकड़ी और नमी की एक अजीब गंध आई। एक ठंडी हवा का झोंका उसके चेहरे से टकराया, जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई।

अंदर कदम रखते ही एक गहरी खामोशी ने उसे घेर लिया। सिर्फ उसकी अपनी धड़कनों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। उसने अपनी टॉर्च जलाई और चारों ओर देखा। हर तरफ धूल की मोटी परत जमी थी, मकड़ी के जाले लटके थे और फर्नीचर पुराने ज़माने का था। हवा में एक अजीब सी उदासी और बेचैनी महसूस हो रही थी। तभी उसे दूर कहीं से हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी। उसने सोचा कि यह हवा का धोखा होगा, पर आवाज़ धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी, जैसे कोई पास आकर बात कर रहा हो।

वह एक टूटी सीढ़ियों से ऊपर गया और एक कमरे में पहुंचा। यह कमरा शायद किसी बच्चे का रहा होगा। एक पुराना, लकड़ी का झूला धीरे-धीरे हिल रहा था, जबकि कमरे में हवा का नामोनिशान नहीं था। झूले के पास एक फटी हुई गुड़िया पड़ी थी, जिसकी कांच की आँखें रोहन की ओर घूर रही थीं। उसे लगा जैसे गुड़िया उसे देख रही हो। तभी अचानक झूले के पास से एक लोरी की धुन सुनाई दी। यह एक मीठी पर डरावनी लोरी थी, जो धीरे-धीरे पूरे हवेली में गूंजने लगी।

लोरी की आवाज़ के साथ ही झूला तेज़ी से हिलने लगा, मानो उस पर कोई बैठा हो। रोहन के पसीने छूट गए। उसे अपने टखने पर एक ठंडे, छोटे हाथ का स्पर्श महसूस हुआ। उसने नीचे देखा, लेकिन वहां कुछ नहीं था। लोरी अब एक बच्चे के डरावनी चीख में बदल गई थी, जो उसके कानों में चुभ रही थी। उसे लगा कि वह सचमुच अकेला नहीं है। एक अदृश्य शक्ति उसके बेहद करीब थी। वह बिना सोचे समझे पीछे मुड़ा और तेज़ी से दरवाजे की तरफ भागा।

हवेली से बाहर निकलते हुए भी उसके कानों में बच्चे की चीखें और झूले की चरमराहट गूंज रही थी। उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा, बस भागा चला गया, जब तक कि वह गांव की रोशनी में वापस न आ गया। उस रात के बाद से रोहन ने कभी उस वीरान हवेली की तरफ मुड़कर नहीं देखा और न ही किसी चुनौती को इतना हल्के में लिया। उसे यकीन था कि उस हवेली में आज भी कोई आत्मा अपनी लोरी गाती है और अपने झूले में झूलती है।

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