एक ठंडी, बरसाती रात थी जब विक्रम सुनसान सड़क पर अपनी गाड़ी चला रहा था। शहर से दूर, एक पुराने नक्शे पर मिली एक छोटी हवेली तक पहुँचने की उसकी कोशिश थी। इंजन में अचानक खराबी आ गई और गाड़ी घने जंगल के बीच रुक गई। चारों ओर गहरा सन्नाटा था, जिसे केवल हवा की सरसराहट और पत्तों की आवाज़ें भंग कर रही थीं। उसके फोन में भी नेटवर्क नहीं था। मजबूरन, उसे पैदल ही आगे बढ़ना पड़ा, उम्मीद थी कि हवेली करीब ही होगी। अंधेरे में, पेड़ों की छायाएँ किसी डरावनी आकृति जैसी लग रही थीं।
कुछ देर चलने के बाद, उसकी नज़र दूर धुंध में लिपटी एक पुरानी हवेली पर पड़ी। उसकी दीवारें काई से ढकी थीं और खिड़कियाँ टूटी हुई थीं, मानो वे वर्षों से वीरान पड़ी हों। हवेली का मुख्य दरवाज़ा आधा खुला था और अंदर से एक अजीब सी ठंडी हवा आ रही थी। विक्रम ने हिम्मत करके अंदर कदम रखा। अंदर कदम रखते ही, उसने एक पुरानी, धूल से ढकी सीढ़ी देखी जो ऊपर अंधेरे में जाती थी। हवा में एक अजीब सी बदबू थी, जैसे कुछ पुराना और सड़ रहा हो।
जैसे ही वह अंदर गया, दरवाज़ा अपने आप ज़ोर से बंद हो गया, जिससे एक भयानक आवाज़ गूँज उठी। विक्रम का दिल ज़ोर से धड़कने लगा। उसने माचिस जलाई। मंद रोशनी में, उसने देखा कि हॉल में चारों ओर पुराने फर्नीचर थे, जिन पर मोटी धूल की परत जमी थी। एक पुरानी पेंटिंग पर उसकी नज़र पड़ी, जिसमें एक महिला की आकृति थी जिसकी आँखें मानो उसे घूर रही थीं। पेंटिंग के ठीक नीचे, एक पुराना पियानो रखा था। तभी, पियानो से एक धीमी, उदास धुन बज उठी, जबकि वहाँ कोई नहीं था।
विक्रम की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। वह डर के मारे काँपने लगा। उसने जल्दी से माचिस बुझाई और अँधेरे में ही सीढ़ियों की ओर भागा। ऊपर के कमरे से हल्की रोशनी आ रही थी। जैसे ही वह ऊपर पहुँचा, उसने देखा कि एक छोटा सा कमरा खुला था और उसके अंदर एक मोमबत्ती जल रही थी। कमरे में एक पुराना बिस्तर था और उस पर एक डायरी रखी थी। डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे और उन पर स्याही के धब्बे थे। उसने डायरी उठाई।
डायरी में उस महिला की कहानी लिखी थी जिसकी तस्वीर नीचे थी। महिला का नाम लावण्या था और उसने लिखा था कि कैसे हवेली में एक बुरी आत्मा ने उसे परेशान किया था, जिसने अंततः उसकी जान ले ली। जैसे ही विक्रम ने आखिरी पन्ने पर लिखा वाक्य पढ़ा “अब तुम अगले हो”, कमरे की मोमबत्ती अचानक बुझ गई। उसने महसूस किया कि कोई उसके पीछे खड़ा है। एक ठंडी साँस उसकी गर्दन पर महसूस हुई और एक भयानक हँसी कमरे में गूँज उठी। विक्रम चिल्लाने ही वाला था कि अँधेरे ने उसे पूरी तरह से निगल लिया। उस हवेली में फिर कभी कोई रोशनी नहीं जली।