परछाई का साया

अमित को हमेशा से पुरानी, वीरान जगहों में एक अजीबोगरीब आकर्षण महसूस होता था। जब उसे अपने परदादा की दूरदराज की हवेली में रहने का मौका मिला, तो उसने तुरंत स्वीकार कर लिया। यह हवेली गाँव से कोसों दूर, घने जंगलों के बीच में स्थित थी। जैसे ही वह वहाँ पहुँचा, एक ठंडी, अप्राकृतिक हवा ने उसका स्वागत किया। हवेली की सड़ी हुई लकड़ी और धूल भरी खिड़कियाँ, जैसे सदियों के रहस्यों को अपने भीतर छिपाए हुए थीं। गाँव वालों ने उसे डराया था कि यह जगह श्रापित है, लेकिन अमित ने इन बातों को सिर्फ़ अंधविश्वास माना।

पहली रात, जैसे ही सूरज डूबा और अँधेरे ने हवेली को अपनी आगोश में लिया, अमित को एक अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी। कमरे में एक अनजानी ठंडक फैल गई, जबकि बाहर मौसम सुहावना था। उसे लगा जैसे कोई लगातार उसे देख रहा है। आधी रात को, उसे ऊपरी मंजिल से हल्की फुसफुसाहट सुनाई दी। ये ऐसी आवाजें थीं, जो हवा में घुल रही थीं, समझ नहीं आ रही थीं, लेकिन दिल दहलाने वाली थीं। उसने सोचा कि यह सिर्फ़ हवा का बहाव होगा, पर उसके मन में एक अनजाना डर बैठ गया था।

अगले कुछ दिनों तक, यह फुसफुसाहट और भी स्पष्ट होती गई। रात में, अमित को अक्सर अपनी परछाई के साथ एक दूसरी, धुंधली परछाई महसूस होती थी, जो दीवार पर दिखकर अचानक गायब हो जाती थी। कभी-कभी उसे लगता कि कोई उसके कानों में कुछ कह रहा है, लेकिन जैसे ही वह पलटता, वहाँ कुछ नहीं होता। हवेली के भीतर की हर दरार, हर पुरानी चीज़, उसे किसी अनजानी शक्ति का केंद्र लगने लगी। वह अकेला नहीं था; यह एहसास अब पुख्ता हो चुका था।

इस रहस्य को सुलझाने की चाह में, अमित ने हवेली के इतिहास को खोजना शुरू किया। उसे पुरानी अलमारी में एक धूल भरी डायरी मिली। डायरी में उसके परदादा के भाई की कहानी थी, जो हवेली में रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था। उसमें लिखा था कि कैसे वह एक पुरानी आत्मा को जगा बैठा था, जो हवेली की दीवारों में कैद हो गई थी। आत्मा ने प्रतिशोध की कसम खाई थी और तब से, वह हर उस व्यक्ति को ढूँढती थी जो उस हवेली में कदम रखता था।

अमित ने डायरी के पन्ने पलटे, तो आखिरी पन्ने पर लिखा था, “जब तुम यह पढ़ोगे, तब वह तुम्हें ढूँढ चुकी होगी।” अचानक, हवेली की सभी खिड़कियाँ एक साथ खड़खड़ाहट के साथ बंद हो गईं। कमरे का तापमान जमा देने वाला हो गया। अमित ने देखा कि उसके सामने, धुंधली परछाइयों के बीच, एक आकृति उभर रही थी। उसकी आँखें लाल थीं और चेहरे पर भयानक गुस्सा था। वह परछाई अमित की ओर बढ़ने लगी, उसके कानों में प्रतिशोध की चीखें गूँज रही थीं। अमित जानता था कि अब उसके बचने का कोई रास्ता नहीं था।

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