राकेश को शहर के शोरगुल से दूर एक शांत जगह की तलाश थी, जहाँ वह अपनी अगली किताब पर ध्यान केंद्रित कर सके। उसकी नज़र एक पुरानी, परित्यक्त हवेली पर पड़ी, जो पहाड़ियों के बीच एकांत में खड़ी थी। स्थानीय लोग उसे भुतहा बताते थे, लेकिन राकेश के लिए यह केवल एक प्रेरणादायक पृष्ठभूमि थी। उसने हवेली किराए पर ली, इसकी जीर्ण-शीर्ण दीवारों और टूटी खिड़कियों के बावजूद, उसे एक अजीब आकर्षण महसूस हुआ। पहली रात, जैसे ही सूरज डूबा, एक ठंडी, अप्राकृतिक चुप्पी ने उसे घेर लिया, जो शहर की शांति से कहीं अधिक गहरी थी।
हवेली के अंदर अजीबोगरीब आवाजें गूँजने लगीं। कभी पुराने लकड़ी के फ़र्श पर क़दमों की आहट, तो कभी फुसफुसाहट जैसी आवाज़ें, जो हवा में घुल जाती थीं। राकेश ने पहले इसे पुरानी हवेली की सामान्य आवाज़ें समझा, लेकिन धीरे-धीरे ये घटनाएँ और स्पष्ट होने लगीं। उसकी मेज पर रखी वस्तुएँ अपनी जगह बदल देती थीं, और कभी-कभी उसे महसूस होता था कि कोई अदृश्य शक्ति उसके पीछे खड़ी है, उसकी हर हरकत पर नज़र रख रही है। रात में, ठंडक इतनी बढ़ जाती थी कि कमरा एक बर्फीले बक्से में बदल जाता।
एक दिन, राकेश को लाइब्रेरी के एक छिपे हुए कोने में एक पुरानी, धूल भरी डायरी मिली। उसके पन्ने पीले पड़ चुके थे और स्याही फीकी। यह डायरी हवेली की एक पूर्व मालकिन, मीरा द्वारा लिखी गई थी, जो कई दशक पहले रहस्यमय तरीके से गायब हो गई थी। डायरी में मीरा के अकेलेपन, उसकी पीड़ा और एक भयानक रहस्य का ज़िक्र था – एक काला जादू जो हवेली में किया गया था, और एक बच्चे की आत्मा जो कभी शांति नहीं पा सकी। जैसे ही राकेश ने आखिरी पन्ना पलटा, हवेली में अचानक तापमान गिर गया।
डायरी में लिखा था कि मीरा का बच्चा एक दुर्घटना में मारा गया था, और उसने अपनी आत्मा को वापस लाने के लिए एक भयानक अनुष्ठान किया था। लेकिन अनुष्ठान गलत हो गया, और बच्चे की आत्मा हवेली में हमेशा के लिए फंस गई, एक क्रोधित और असंतुष्ट भूत बनकर। जैसे ही राकेश ने यह पढ़ा, लाइब्रेरी का दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। चारों ओर से फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं, और एक ठंडी हवा उसके शरीर से आर-पार निकल गई। अंधेरे में, उसे एक छोटी, काली आकृति दिखाई दी, जिसकी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं।
राकेश ने डरकर डायरी फेंक दी और दरवाज़ा खोलने की कोशिश की, लेकिन वह जाम हो चुका था। वह आकृति उसके करीब आती जा रही थी, उसकी फुसफुसाहट अब एक तेज़ चीख़ में बदल रही थी। कमरे की हवा में एक भयानक गंध फैल गई, और राकेश को लगा जैसे कोई अदृश्य हाथ उसके गले को जकड़ रहा हो। उसकी आवाज़ गले में ही अटक गई, और वह समझ गया कि वह अकेला नहीं था। हवेली का राज़ अब उसके सामने था, और वह खुद उस रहस्य का अगला अध्याय बनने वाला था।











