माया ने शहर की भाग-दौड़ छोड़, अपने पैतृक गाँव शांतपुर में कदम रखा। यहाँ की हरी-भरी वादियाँ और पुरानी हवेली उसे सुकून देने वाली थीं। यह हवेली कई दशकों से वीरान थी, और माया इसे अपना नया घर बनाना चाहती थी। पहले कुछ दिन तो सब ठीक रहा, बस रात की ख़ामोशी कभी-कभी कानों में गूँजती थी, जैसे कोई धीमी साँस ले रहा हो। उसे लगा यह सिर्फ़ उसकी कल्पना है, शहर की हलचल से दूर, अब उसे इस नई शांति की आदत डालनी होगी।
लेकिन धीरे-धीरे, हवेली का माहौल बदलने लगा। रात में लाइटें अपने आप जल-बुझ जातीं। कभी रसोई से बर्तनों के खिसकने की आवाज़ आती, तो कभी दालान में ठंडी हवा का झोंका उसे छूकर निकल जाता, जबकि कोई खिड़की खुली नहीं होती थी। माया ने पहले इसे पुरानी वायरिंग या हवा का बहाव समझा, पर जब उसने अपने नाम की हल्की फुसफुसाहट सुनी, तो उसकी रीढ़ में सिहरन दौड़ गई। उसे लगा कोई अदृश्य शक्ति उसके हर कदम पर नज़र रख रही है।
एक रात, जब घड़ी की सुईयाँ आधी रात का निशान छू रही थीं, माया ने एक बेहद उदास लोरी की धुन सुनी। आवाज़ हवेली के पिछले हिस्से से आ रही थी, जहाँ एक पुराना, बंद कमरा था। इस कमरे का दरवाज़ा हमेशा बंद रहता था और उस पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी। माया ने हिम्मत जुटाकर उस दिशा में कदम बढ़ाए। जैसे-जैसे वह क़रीब पहुँची, लोरी की धुन और स्पष्ट होती गई, और उसके साथ एक गहरी ठंडी, नमी भी महसूस हुई, मानो कोई रो रहा हो।
उसने किसी तरह वह पुराना दरवाज़ा खोला और अंदर एक धूल भरी अल्मारी में एक पुरानी डायरी मिली। डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे, लेकिन उस पर स्याही के शब्द साफ़ थे। वह डायरी राधा नामक एक महिला की थी, जो दशकों पहले इसी हवेली में रहती थी। डायरी में राधा ने अपने छोटे बच्चे को खोने का दर्द लिखा था, और कैसे उस सदमे में उसने अपनी जान दे दी। अंतिम पन्नों पर उसकी निराशा और गुस्से के शब्द खून के धब्बे जैसे दिख रहे थे।
राधा की आत्मा की उपस्थिति अब और ज़्यादा तीव्र हो गई थी। कमरे में रखी चीज़ें अपने आप गिरने लगीं, परछाइयाँ दीवारों पर नाचतीं और एक पल को माया को लगा कि राधा उसके ठीक पीछे खड़ी है, उसकी ठंडी साँसें उसकी गर्दन पर महसूस हुईं। राधा का दुख अब क्रोध में बदल गया था, और वह माया को इस हवेली में अकेले नहीं रहने देना चाहती थी। हर रात वह लोरी और अधिक डरावनी होकर गूँजती, माया को घेरती हुई।
माया ने राधा की आत्मा को शांत करने की कोशिश की, प्रार्थनाएँ कीं, लेकिन यह सब व्यर्थ था। एक रात, जब माया डर के मारे काँप रही थी, उसने साफ़-साफ़ राधा की आकृति देखी। वह एक धुंधली, उदास परछाई थी, जिसकी आँखें गहरे दर्द और असीमित क्रोध से भरी थीं। राधा ने अपनी ठंडी, पारदर्शी उँगलियाँ माया की ओर बढ़ाईं, जैसे उसे भी अपने साथ इस अनन्त अंधकार में खींच लेना चाहती हो। माया समझ गई कि यह हवेली अब राधा का शाश्वत कारावास है, और वह भी इसमें फँस चुकी है, हमेशा के लिए।











