रामपुर की डरावनी रातें

रात के दस बजे थे जब अमन दिल्ली के चहल-पहल वाले बस अड्डे पर पहुँचा। उसे रामपुर जाना था, एक ज़रूरी सरकारी काम से पंचायत ऑफिस में। पता चला कि रामपुर जाने वाली बस साढ़े दस बजे निकलेगी और देर रात करीब दो बजे तक वहाँ पहुँच जाएगी। अमन जल्दी से बस में जाकर बैठ गया। बस अभी कुछ खाली थी, सिर्फ़ दो-चार सवारियाँ ही बैठी थीं।

साढ़े दस बजे बस ने अपनी यात्रा शुरू की। कंडक्टर से टिकट लेते हुए अमन ने पूछा,

अमन: भाई साहब, रात को बस स्टैंड से गाँव के लिए कोई सवारी मिल जाएगी क्या?

कंडक्टर: मेरी बात मानो तो रामपुर मत उतरो। आगे शहर में उतर जाना, वहाँ से रामपुर बीस मील है। किसी होटल में रुक कर सुबह आराम से आ जाना।

अमन को कंडक्टर की बात समझ नहीं आई। उसे लगा शायद रात में गाँव जाने के लिए साधन न मिलते हों। वह बोला,

अमन: नहीं भाई, मुझे तो रामपुर ही जाना है। काम ख़त्म करके कल ही वापस लौटना है।

बस चलती रही और सवारियाँ बढ़ती गईं। रात करीब ढाई बजे बस रामपुर बस स्टैंड पर पहुँची। अमन बस से उतर रहा था कि कुछ सवारियों ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन अमन नहीं माना और बस स्टैंड पर उतर गया।

बस स्टैंड बिलकुल सुनसान पड़ा था। अमन अंदर गया तो टिकट काउंटर पर भी कोई नहीं था। वह वहीं पास पड़ी एक बेंच पर बैठ गया।

अमन: लगता है यहाँ कोई नहीं है। रात यहीं टिकट काउंटर में बिता लेता हूँ, सुबह होते ही गाँव चला जाऊँगा।

वह टिकट काउंटर के गेट पर पहुँचा, लेकिन वहाँ ताला लगा हुआ था। अमन निराश होकर उसी बेंच पर आकर बैठ गया। कुछ ही दूर पर एक चाय की दुकान थी। वह वहाँ पहुँचा, लेकिन वहाँ भी कोई नहीं था। दुकान के अंदर एक बेंच पड़ी थी, अमन अपना बैग सिर के नीचे लगा कर वहीं लेट गया।

कुछ देर में उसे किसी के चलने की आहट सुनाई दी। वह दुकान से निकल कर बाहर देखा तो एक आदमी कंबल ओढ़े, शायद हाथ में बीड़ी लिए गाँव की ओर जा रहा था।

अमन: अरे भैया, रुको! क्या तुम गाँव जा रहे हो?

वह आदमी नहीं रुका और सीधा चलता चला जा रहा था। अमन भाग कर उसके पास गया। उसने देखा कि वह एक बूढ़ा आदमी था जिसका रंग एकदम काला था। अमन को देखकर वह रुका।

आदमी: क्या है? मेरा रास्ता क्यों रोका?

अमन: भाई, मुझे भी साथ ले चलो। गाँव तक जाना है।

आदमी: इस समय जाना ठीक नहीं। यहीं सो जाओ, सुबह गाँव चले जाना।

अमन: लेकिन तुम भी तो जा रहे हो। मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ।

आदमी: ठीक है, तुम्हारी मर्जी। लेकिन बाद में मत कहना बताया नहीं था। तुम शहरी लोग किसी बात मानते कहाँ हो। चलो।

दोनों खेतों के रास्ते से होकर गाँव की ओर चल दिए। रास्ते में आदमी ने पूछा,

आदमी: भूत-प्रेत में विश्वास रखते हो?

अमन: नहीं, भूत-प्रेत कुछ नहीं होते।

आदमी: बीड़ी पीते हो?

अमन: नहीं।

आदमी: मैं बीड़ी जला कर देता हूँ, इसे हाथ में पकड़ कर चलो। वरना ये खेत भी पार नहीं कर पाओगे। हाथ में आग रहेगी तो सही रहेगा।

अमन को बड़ा अजीब लग रहा था, लेकिन उसने उस आदमी की बात मानने में ही भलाई समझी और जलती हुई बीड़ी अपने हाथ में ले ली।

आदमी: पीछे से कोई आवाज़ दे तो पलट कर मत देखना। चाहें कोई भी हो।

अमन आदमी के पीछे-पीछे चल रहा था। तभी उसे किसी बच्ची के रोने की आवाज़ सुनाई दी। अमन का मन विचलित हो उठा।

अमन: भाई, लगता है कोई बच्ची मुसीबत में है।

आदमी: तुम मुझे भी मरवाओगे! ये सब छलावा है, तुम चुपचाप मेरे पीछे चलो। पीछे मत देखना।

कुछ दूर आगे जाने पर एक कुआँ दिखाई दिया।

अमन: भाई जी, यहाँ पानी पी सकते हैं? बहुत प्यास लगी है।

आदमी: नहीं, रात के समय यहाँ रुकना ठीक नहीं। अगर रुक गए तो गाँववालों को सुबह हमारी लाश ही मिलेगी। चुपचाप चलते रहो।

अमन चुपचाप उस आदमी के पीछे चलने लगा। अचानक अमन को लगा जैसे उसके पैर किसी ने जकड़ लिए हों। उसके पैर उठ नहीं रहे थे। वह बड़ी मुश्किल से आगे बढ़ रहा था।

अमन जोर से चिल्लाया: भाई जी, मुझसे अब चला नहीं जा रहा। कुछ देर बैठ जाते हैं।

आदमी: लगता है तुम्हारी बीड़ी बुझ गई।

अमन ने देखा, वाकई उसकी बीड़ी बुझ गई थी।

आदमी: तुम्हें किसी साये ने पकड़ लिया है। मैं अपना हाथ देता हूँ, उसे पकड़ कर मेरे साथ चलो। मैं पीछे मुड़ कर नहीं देख सकता।

अमन उस आदमी का हाथ पकड़ लेता है। वह आदमी लगभग उसे घसीटता हुआ लेकर चलने लगता है। कुछ दूर इसी कशमकश में चलते-चलते अमन के पैर हल्के हो जाते हैं।

अमन: भाई जी, अब ठीक है। मैं चल पा रहा हूँ।

आदमी: तुम्हें पता नहीं तुम अभी-अभी मौत के मुँह से बच कर आये हो। मेरे हाथ में आग थी जिसने तुम्हें बचा लिया।

कुछ ही देर में दोनों गाँव पहुँच गए। सुबह होने को थी। वह आदमी अमन को अपने घर ले गया। घर में उसकी पत्नी थी।

पत्नी: आपको कितनी बार कहा है, रात के समय मत आया कीजिए।

आदमी: मुझे किसी से डर नहीं लगता। ये शहरी बाबू डर रहे थे, इन्हें भूत ने पकड़ भी लिया था। इन्हें भी छुड़ा लाया। आप बैठो। जा, इनके लिए चाय बना ला।

अमन बहुत डर रहा था। वह बोला,

अमन: क्या गाँव के लोग रात को कहीं नहीं जाते?

आदमी: नहीं, गाँव के बाहर भूतों का पहरा रहता है। जो भी गया, वापस नहीं आया।

अमन: आप कहाँ से आ रहे थे?

आदमी: मैं अक्सर अपने बेटे को ढूँढने निकल जाता हूँ। वह भी आपकी तरह रात को उस रास्ते पर गया था, लेकिन वापस नहीं आया।

कुछ ही देर में सुबह हो गई। अमन पंचायत घर गया और अपना काम निपटा कर वापस जाने लगा तो वह पहले उस आदमी के घर गया।

अमन: बाबा, मैं वापस जा रहा हूँ। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

आदमी: बेटा, एक वादा करो। चाहें कितना भी ज़रूरी काम हो, इस गाँव में वापस मत आना। लेकिन अब सवाल यह है कि जाओगे कैसे?

अमन: क्यों? दिन में भी नहीं जा सकते क्या?

आदमी: अब तुम इस गाँव से बाहर नहीं जा सकते। तुम्हें यहीं रहना होगा। मैं तुम्हें मना कर रहा था यहाँ आने को, लेकिन तुम नहीं माने। रात को उन आत्माओं ने तुम्हें देख लिया। अब वे तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेंगी। यहाँ कुछ नहीं कर पाईं तो तुम्हारे घर तक पहुँच जाएँगी। अपने घरवालों की रक्षा करना चाहते हो तो इसी गाँव में बस जाओ।

अमन बहुत डर जाता है। गाँव के पीछे एक पुराने मकान में रहने लगता है। उसे वहाँ रहते कई महीने बीत जाते हैं, फिर साल भी बीत जाते हैं।

एक दिन अमन उस आदमी के घर जाकर उसके पैर पकड़ लेता है।

अमन: बाबा, मुझे किसी तरह इस गाँव के बाहर पहुँचा दो। मैं अपने घर जाना चाहता हूँ।

आदमी: तुम इस गाँव में आना चाहते थे। इस गाँव में तुम्हारे अलावा और भी कई लोग शहर से आये थे। कुछ ने जाने का प्रयास किया, मारे गए। कुछ इसी गाँव में रहते हैं, लेकिन किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि तुम्हें कुछ बता सके। चुपचाप यहाँ रहो, नहीं तो मारे जाओगे। गाँव के लोग यहाँ बाहर से आने वाले का पूरा ध्यान रखते हैं। खाना, पीना, रहने के लिए जगह—सब कुछ मिलेगा।

इधर अमन के घर पर उसकी पत्नी और एक बेटी थी। वे अमन को ढूँढने के लिए कभी पुलिस चौकी जातीं, कभी उसके ऑफिस, लेकिन अमन का कोई पता नहीं लगता। कुछ दिन में सरकार ने उसे मृत घोषित कर दिया और उसकी पत्नी को पेंशन देनी शुरू कर दी।

इसी तरह सात साल बीत गए। एक दिन गाँव वाले बाहर नाच गा रहे थे। तभी अमन बाहर निकला। गाँव वालों ने उसे अपनी खुशी का कारण बताया।

आदमी: बेटा, आज से बारह साल पहले हमारे गाँव में एक तांत्रिक आया था। उसे गाँव वालों ने मार मार कर भगा दिया। तभी से उसने आत्माओं को बुला कर इस गाँव को बांध दिया। कोई भी गाँव से बाहर नहीं जा सकता था। अब गाँव में एक साधु बाबा आये हैं। कल वे पूजा करेंगे जिससे यह गाँव बंधन से खुल जाएगा और सभी आत्माओं को मुक्ति मिल जाएगी। तुम भी अपने घर जा सकते हो।

अगले दिन पूरे गाँव को सजाया गया। साधु और उनके शिष्यों ने गाँव के बीच में हवन किया। हवन के समय कई आत्माओं की आवाज़ें गाँव वालों ने सुनीं। हवन समाप्त होते-होते सब शांत हो गया। गाँव अब श्राप मुक्त हो चुका था। अमन भी साधु बाबा और अन्य लोगों के साथ गाँव से बाहर आ गया। वहाँ से बस लेकर वह अपने घर पहुँच गया। घर पहुँच कर अमन ने चैन की साँस ली।

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